वर्धा प्रतिनिधी
बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने हिंदी विश्वविद्यालय के निष्कासित छात्र जतीन चौधरी के मामले में अपना निर्णय सुनाया है। इस निर्णय के बाद महात्मा गांधी अतंरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने जतीन के निष्कासन आदेश को स्थगित कर दिया है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के सामान्य छात्रों को दी जाने वाली सभी सुविधाएं बहाल कर दी गई हैं।
गौरतलब हो कि हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने 7 फरवरी 2024 को जापानी भाषा में स्नातक की पढ़ाई कर रहे जतीन चौधरी को निष्कासित कर दिया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने निष्कासित छात्र पर 27 जनवरी 2023 को अध्यापकों, अधिकारियों तथा सुरक्षा कर्मियों के साथ अभद्रता, हिंसा, अराजकता तथा प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करने तथा भय एवं अशांति फैलाने का आरोप लगाया था। विवि प्रशासन ने निष्कासित करने के साथ-साथ छात्रावास खाली करने का भी निर्देश जारी किया था। इसके अलावा विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश पर भी रोक लगा दिया था। वहीं छात्र जतीन विश्वविद्यालय के इस निर्णय को लेकर बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की। याचिका पर सुनवाई करते हुए बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने विश्वविद्यालय द्वारा किए गए निष्कासन पर रोक लगा दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में आगे कहा कि याचिकाकर्ता विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में सभी लाभों को प्राप्त करने का हकदार है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोर्ट के निर्णय के आधार पर जतीन का निष्कासन वापस करते हुए विश्वविद्यालय के सामान्य छात्रों को दी जाने वाली सुविधाएं को बहार कर दी है हालांकि अभी 5 छात्रों का निष्काषन/निलंबन विश्वविद्यालय द्वारा जारी है।
जतिन चौधरी ने अपने बयान में बताया की, जब मेरा निष्कासन हुआ उस वक्त मेरे मन में तरह-तरह का मानसिक दबाव व नकारात्मक ख़याल आने लगे। मेरे कैरियर, मेरे परिवारजनों सम्बन्धी भविष्य की समस्यायों को लेकर विचार बनने लगे। मेंरे सामने संकट था की मै इतनी दूर से यहाँ पढ़ने आया था पर मै अपने हक में आवाज भी नहीं उठा सकता। मुझे विश्वविध्यालय से निकाल दिया गया सारी सुविधाओं को मेरे लिए खत्म कर दिया गया प्रशासन लगातार मुझ पर हमलावर की भूमिका में था। यह सब सोचकर मेरा मानसिक दबाव और बढ़ जाता था डर के इस माहौल मेरे साथियों का मेरे साथ खडा होना भी काफी मुश्किल था। मेरे साथियों ने सलाह दी कि उच्च न्यायालय में जा कर न्याय की माँग करो। उच्च न्यायालय की प्रक्रिया में समय लगा, मै अपनी छमाही परीक्षा नहीं दे पाया, लेकिन अंततः मुझे न्याय मिला। आज जब मैं अपने होस्टल पहुँचा हूँ तो मुझे इस चीज़ का एहसास हुआ कि कितना मुश्किल होता है इस तरह की लड़ाई लड़ना, मेरे मन में ख़याल आता है कि एक आम छात्र के लिए कितना मुश्किल होगा प्रशासनिक शोषण के खिलाफ लड़ना और जीत पाना वह तो प्रशासन के पहले प्रहार में ही शायद हार मान जाए। जिसे इस तरह की प्रतिक्रियाओं व इस तरह की न्यायालय सुविधाओं का अनुमान नहीं है उसके लिए शायद बहुत मुश्किल हो सकता है। वो कोई ग़लत क़दम भी उठा सकता है। अंत तक मैं ख़ुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे न्याय मिला इसकी उम्मीद मुझे बहुत कम थी, लेकिन ये संभव हो पाया इसके लिए मै उच्च न्यायालय और मेरे साथियों को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने अंत तक मेरा साथ नहीं छोड़ा।